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तमिलनाडु की सरकार ने सोमवार को वेदांता लिमिटेड के तूतीकोरिन में बने तांबा प्लांट को बंद करने का फैसला लिया था। यह प्लांट भारत की जरुरत का 40 प्रतिशत तांबा पैदा करता है। इसके बंद हो जाने से विद्युत क्षेत्र की लगभग छोटी और मध्यम वर्ग की 800 यूनिट पर असर पड़ेगा। जिसमें केबल निर्माता, वाइंडिंग वायर और ट्रांसफॉर्मेर निर्माता शामिल हैं। यह सभी तूतीकोरिन की स्टरलाइट कॉपर यूनिट से तांबा लेते हैं। ज्यादातर ऐसी यूनिट देश के पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र में स्थित हैं।
कंपनी के बंद हो जाने से भारत के तांबा निर्यात पर लगभग 1.6 लाख टन का प्रभाव पड़ेगा। तूतीकोरिन प्लांट की ज्यादातर पैदावार को अतंर्राष्ट्रीय बाजार में बेच दिया जाता है। रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की अप्रैल रिपोर्ट के अनुसार देश में तांबा की खपत पिछले पांच सालों में काफी बढ़ी है। वर्तमान में स्थानीय मांग में भी 7-8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यदि कोई नया प्लांट नहीं लगाया जाएगा तो साल 2020 तक भारत धातु के शुद्ध आयातक में बदल सकता है। तूतीकोरिन में बंद हुए तांबे को गलानेवाले संयंत्र की वजह से यह अनुमान और बढ़ने की उम्मीद है।
इस समय भारत के तांबा उद्योग में तीन कंपनियां प्रमुख हैं। इनमें पहली हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) है जोकि केंद्र सरकार का सार्वजनिक उपक्रम है। इस कंपनी के पास सालाना 99,500 लाख टन की पैदावार करने की क्षमता है। दूसरे नंबर पर है हिंडाल्को और तीसरे नंबर पर स्टरलाइट कॉपर। यह दोनों ही निजी कंपनियां हैं जो 5 लाख टन और 4 लाख टन सालाना का उत्पादन करती हैं। भारत का तांबा उद्योग सालाना 10 लाख टन के परिशोधित तांबे का उत्पादन करता है।

भारत के उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत निर्यात होता है, खासतौर से चीन को। साल 2016-17 के बीच स्टरलाइट कॉपर का इस निर्यात में 41 प्रतिशत का हिस्सा था। एक सूत्र ने कहा, तूतीकोरिन प्लांट के बंद होने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 50 हजार लोगों की नौकरियों पर असर पड़ेगा।

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