शायद ये मेरे लिए काफी मुश्किल भरा सफर होने वाला है, क्योंकि मैंने लिखने से पहले कई बार सोचा कि आप लोग क्या सोचेंगे। नीरज के पुत्र ने लिखा है शायद कुछ नया लिखा होगा। आप मेरे लेख की हर लाइन में नीरज के गीतों की तरूणाई, शैशव का संघर्ष, श्रृंगार का यौवन, नीरज नैना की मस्ती, नीरज की यायावारी, उनका फक्कड़पन, उनकी वेदना, मेरे शब्दों का चयन, इन सब को तलाशेंगे। आप पूरा लेख पढ़ लेंगे और फिर आंकलन करेंगे। आप स्वच्छंद है ऐसा करने के लिए क्योंकि सृजन के लिए शायद उन्मुक्त होना ज़रूरी होता है, और कविता के लिए सहज होना ज़रूरी है। अगर आप सोच कर कविता लिख रहे हैं तो फिर गद्य का जन्म होता। कविता लिखी नहीं जाती वो ख़ुद लिख जाती है, वैसे ही जैसे पहाड़ों पर निर्झर और फूलों पर ओस की कहानी लिख जाती है। जिस प्रकार जल-जलकर बुझ जाना दीपक के जीवन की विवशता है, गा-गाकर चुप हो जाना नीरज के काव्य की मजबूरी है। मजबूरी माने वो नीरज के जीवन की विवशता है, अस्तितव की शर्त है, अनिवर्यता है। वह मुक्त है और मोक्ष भी, तभी तो न वह किसी वाद की अनुगामिनी है और न किसी सिंद्धांत की भामिनी,
आयु है जितनी समय की गीत की उतनी उमर है
चांदनी जब से हंसी है, रागनी तब से मुखर है
जिंदगी गीता स्वंय जान ले गाना अगर हम
हर सिसकती सांस लय है, हर छलकता अश्रु स्वर है
नीरज का फक्कड़पन कबीर की वाणी की तरह है जो आज 65 साल बाद भी लोगों की जुबान बोलता है। उन्होंने जो शब्दों का महल बनाया है उसमें दीवान-ए-ख़ास जैसी कोई चीज़ नहीं है वहां केवल दीवान-ए-आम ही है जिसमें हर इंसान, हर वर्ण, बिना किसी संकोच के अंदर आ सकता है और आमने सामने खड़ा होकर आपनी बात कह सकता है। तो प्रेम और विशेष रूप से मानव प्रेम नीरज की कविता का मूल स्वर है,
बस यही अपराध में हर बार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं
वेदना आदमी के अंदर के भावों को झंकृत करती है। प्रकृति भी यही चाहती है। नीरज के नाम में ही उन्मुक्तता है। नीरज की यायावरी सिर्फ़ उनके कवि सम्मेल्लनों तक ही सीमित नहीं है। ये कविता की यायावरी का संघर्ष छह साल की उम्र से शुरू हुआ।
पुरावली जिला इटावा सन् 1925 यही तो होता है राशन कार्ड में जो किसी की पहचान बताने का एकमात्र दस्तावेज़ है हिदुस्तान में। नीरज के शुरुआती जीवन की दास्तान भी यही है, शायद नहीं भी और हां भी। वल्दियत की तस्दीक नौकरी में करनी पड़ती है तो शायद शुरुआती तफ़्तीश का यही एकमात्र ऐतिहासिक दस्तावेज़ है उनका। मगर नीरज की दास्तान चरागों की दास्तान है जिसे रात भर रो-रो जलकर अंधेरे का सीना चीरना ही पड़ता है क्योंकि उसी अंधेरे की छाती में दफ़न हैं आंसूओं की पहचान। इसलिए नीरज की दास्तान सरेशाम की कहानी है, जो उनकी ही जुबानी है…सुनी जाए और कही जाए तो अच्छा है…
बुझ जाये सरेशाम ही जैसे कोई चिराग
कुछ यूं है शुरुआत मेरी दास्तान की
नीरज से बढ़कर धनी कौन है यहां
उसके हृदय में पीर है सारे जहान की